26 March 2020

एक बार फिर जी लो...


मार्च 2020 अभी सब नोर्मल ही था स्कूल जाते बच्चे को एग्जाम की चिंता, SSC और UPSC के सारे एस्पाइरेंट्स अपना बेस्ट देने में लगे थे। घर पर मां को खाने और सफाई की चिंता और पीछे बहुत सालों से पापा की ऑफिस वाली वही जिंदगी। ताजुब की बात ये थी की एक उम्र सी बीत गई थी वक्त को  ठहरे हुये सबकी जिंदगियां इतनी तेजी से चल रही थीं की किसी ने रुकने का सोचा ही नहीं, सबको आगे ही बढ़ना था। एक खबर थी अखबारों में कि दुनियां के एक हिस्से में कुछ हो रहा था पर अभी तक हमारे यहां जिंदगी रफ्तार में ही थी, कुछ लोगों ने मजाक भी बनाया की जो बुरा करते हैं उनके साथ ही होगा हमें कुछ नहीं होगा।

मेरी दादी एक कहानी सुनाती थी कि आज से बहुत साल पहले कभी महामारी आयी थी ऐसे हालात थे उस वक्त की अगर एक का अंतिम संस्कार करके आए तो दूसरी जिंगदी उससे पहले दम तोड़ रही थी। इस कहानी वाले लोगों में मेरे पूर्वजों में से भी तीन बच्चों ने ऐसे ही अपना दम तोड़ा। पर यकीन मानिए हमेशा ऐसा लगता था कि अब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि ऐसा आगे तो शायद कुछ ना हो।तीसरे विश्वयुद्ध का डर तो दिल में था पर सोचा ना था कि वो किसी वायरस के रूप में आएगा जहां वायरस बनाम पूरी दुनिया होगी। 

आप सोचकर देखिये हमारी जिंदगी इतनी रफ्तार से चल रही थी कि ब्रेक लगने पर भी झटका तेजी से लगता पर यहां पर तो रुकना था। कई बार सुना था लॉकडाउन के बारे में कश्मीर के उन लोगों के लिये दुख भी हुआ जो एक लम्बे वक्त तक अपने घरों में कैद रहे पर कभी उनका दर्द महसूस नहीं हुआ क्योकिं कभी कुछ ऐसा जिया ही नहीं। हाँ  एक फ़र्क है उनमें और हममें शायद उन्हें मौत का डर नहीं रहा पर अब हमें है। हम अपने आस-पास पड़ोस के उन लोगों से भी डर रहे हैं जिनके साथ हम जिन्दगी के इतने साल रहे हैं। 

एक ही गुजारिश है मेरी आप सब से की माना  की हम अपनी मर्जी से नहीं ठहरे हैं। पर अब जब हम रुक ही गए हैं तो थोड़ा आराम कर लिजिये, जिन्दगी का कुछ वक्त खुद के लिये निकालिए और जो बीत गया उस पर एक बार झांक कर देखिये की इस रेस में आगे बढ़ते-बढ़ते कहीं हम खुद को ही ना भूल गये हों। 

अगर आपको अपना घर कैद लग रहा है तो एक बार अपने जीवनसाथी की शिकायतें सुनिये और समझने की कोशिश करके देखिये। बुजुर्ग माँ बाप को भी जिन्होनें जिन्दगी दी शुक्रिया कह दीजिये। बहन भाई की जिन शरारतों ने जिन्दगी में रंग भर दिये उन्हे फिर याद कर लिजिये। उन बच्चों के साथ जिनकों समय ना होने के कारण आपने वीडियोगेम या मोबाइल फोन दिये ताकि आपकी कमी शायद वो चीजें पूरी कर दें उनकों वो वक्त दे के देखिये यकीन मानिये कैद कब जन्नत हो जाएगी और वक्त हँसते कब गुजर जाएगा पता ही नहीं लगेगा। अपनी दुनिया उस घर की दिवारों में फिर जन्नत  बनाकर यकीन मानिये आप खुद को भी सुरक्षितरखेंगे अपने परिवार को भी और पूरी दुनिया भी आपकी कर्जदार रहेगी।

शुक्रिया
मुस्कुराते रहिये
शीनू मोठसरा



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