16 March 2018

जाति के नाम पर गर्व करने लायक क्या ?  


जाति के बखान से लोगों को कौन-से रस की तृप्ति होती है समझ से परे है. 



आज जब युवाओं को अपनी जाति के बखान को लेकर छाती पिटते देखता हूँ तो बहुत दुख होता है, ये लोग जितनी ऊर्जा जाति के प्रचार-प्रसार में लगाते है अगर उतनी ही ऊर्जा अपने जीवन को सही दिशा देने में लगाए तो शायद इनके साथ-साथ देश और समाज का भी फायदा हो. 





दूसरे राज्यों में जाति को लेकर लोग किस तरह व्यवहार करते हैं पता नहीं परंतु हरियाणा में जातियों के प्रति लोग बहुत सजग है यहां लोग ख़ासकर गांव-देहात में हर काम जाति के आधार पर अनुमानित कर लेते हैं. सभी जातियों की कुछ ख़ासियतों के पैमाने लोगों ने गढ़ दिए है, कि इस जाति से है तो ऐसा होगा, उस जाति से है तो वैसा होगा.






युवा गाड़ियों, मोटरसाइकिलों पर अपनी जातियों के नाम पूरी शान के साथ लिखवाते हैं. मोटरसाइकिल की पंजिकृत संख्या आने से पहले ही मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट जाति की शान बढ़ाकर मालिक के पैसो का कर्ज अदा कर रही होती है. 





कई महाशय तो नंबर मिलने के बाद भी नंबर नही लिखवाते पर पूरी नंबर प्लेट पर जाति का नाम जरुर लिखवा लेते हैं. अच्छे खासे पढ़े-लिखे युवा ऐसा करते हैं. गाँवों में तो सत्तर फीसदी युवाओं की मोटरसाइकिलों पर आपको जाति के नाम अंकित मिलेंगे. 






जाति के प्रचार को लेकर हमारा युवा वर्ग यहीं तक सिमित नहीं है वह जातियों के नाम लिखी टी-सर्ट पहन कर गौरवान्वित महसूस कर रहा है. ऐसी टी-सर्टस् ऑनलाइन शोपिंग साईट्स पर आसानी से मिल रही हैं।  



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इस तरह के चलन की शुरुआत अगडी़ जातियों के युवाओं से शुरु हुई थी लेकिन अब जो जातियाँ भारतीय समाज में सामाजिक और आर्थिक रुप से कमजोर तबके की समझी जाती है, जो जातिगत भेदभाव से जूझती आई हैं और जो जातिवाद के दंश को खत्म करने का दम भरती रही हैं, भले ही कम हो लेकिन उनमें भी अब यह चलन शुरू हो चुका है. इन जातियों के युवा भी अब आपको इसी मानसिक स्थिति से गुजरते मिलेंगे.   




हद तो तब हो गई जब हमने मनोरंजन को भी जातियों में बाट दिया जाति के नाम पर गानें आ रहे हैं, शादी ब्याह में लोग पूरी शान के साथ इन गानों पर नाचते दिखाई देते हैं. 


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कई बार तो एक ही शादी में जब दो अलग-अलग जाति के लोग हो तो उनमें अपनी जाति के गाने बजाने की होड़ में झगड़ा तक हो जाता है. इस तरह के गाने बनाने वालो का उद्देश्य केवल अपना धंधा करना होता है परंतु  धंधे के चक्कर में समाज के बीच अपने गानों से जो दूरी वो पैदा कर जाते हैं उसका परिणाम नकारात्मक ही होता है. 

अभी कुछ समय पहले हरियाणा में इस तरह के जातिसूचक गानो को लेकर दो जातियों के युवाओं के बीच तनाव भी पैदा हो गया था जो सोशल मीडिया पर खूब चला था. मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया था हालांकि बाद में पंचायत के माध्यम से मामला सुलझा लिया गया था. 

मामला भले ही सुलझा लिया गया हो परंतु इन जातिसूचक संगीतों की वजह से समाज में जो दरार पैदा हुई उसका जिम्मेवार कौन? आखिर ऐसा कर के हम दिखाना क्या चाहते हैं?  

इस प्रकार जातियों के नामों का प्रचार कर हम अपनी जातिवादी मानसिकता को बढ़ावा दे रहे होते हैं. आखिर यह समाज जातियों का झुठा चोला कब तक ओढ़ कर रखेगा. 


यह जातियों का ही भेद हैं जो हमें एक दूसरे से अलग होने का अहसास कराता है वरना क्यों एक ही गांव में हम अलग-अलग मोहल्लों की सीमाओं में बंटे हुए हैं, अलग-अलग जीवन शैलियों में बंधे हुए हैं। इन जातियों ने ही इंसानों को बांटा है. गांव-देहात में जाति को लेकर लोगों की सजगता बड़े स्तर पर देखी और समझी जा सकती है.छोटे शहरों में अभी भी ऐसा ही है, सबको पता होता है किस मोहल्ले में किस जाति के लोग रहते हैं.

एक दौर था जब हमारे पूर्वज जातियों के नाम पर घोर भेदभाव करते थे परंतु आज की पीढ़ी में इस मामले में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है, इसलिए आज के युवा से ये भी उम्मीद की जा सकती है कि वे इस जातिवाद के दिखावे से भी बाहर आए क्योंकि यह दिखावा हमे मानवता के स्तर तक नहीं ले जा सकता. 


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जाति का घमंड हमें अपने को दूसरों से अलग व श्रेष्ठ मानने वाला होता है. इस घमण्ड़ को हमे अपने से दूर करने की आवश्यकता है. हम सबको मिलकर इस सामाजिक बुराई के ख़िलाफ़ खड़ा होना होगा.

जाति के नाम पर गर्व करने वाले युवाओं को नेता अपने राजनैतिक हित साधने में प्रयोग कर जाते हैं. आज की पीढ़ी से कम-से-कम ये उम्मीद और आशा की जा सकती है कि वो अब इन दिखावों के प्रतिकों से बाहर आए.

जब तक आप इन जातियों के नाम पर गर्व कर छाती चौड़ी कर घुमेंगे तब तक जिंदगी को खुलकर जिने का हक खो रहे होंगे. क्योंकि एक ही तरह की जीवन शैली, एक ही तरह का रहन-सहन, कुछ शर्तो पर दोस्ती, आपकी जिंदगी को तलाब में सड़ रहे पानी की तरह बना देगी. - गौरव कुमार  

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