चन्द्रशेखर पर रासुका ?
क्योंकि चन्द्रशेखर किसी राजनेता का बेटा नहीं है, क्योंकि वह किसी व्यवसायी का बेटा नहीं है क्योंकि वह किसी रसूख़दार के घर पैदा नहीं हुआ है.
इसी साल मई-जून में उत्तरप्रदेश के सहारनपुर ज़िले के शब्बीरपुर में दलितों और ठाकुरों के बीच हिंसक घटनाएं हुई थीं. ठाकुरों ने बाबा साहेब अंबेड़कर के जन्मोत्सव पर दलित समुदाय को अम्बेड़कर मूर्ति स्थापना व झलसा निकालने से रोका था. वहीं इसके बाद फिर अगले ही महीने माहाराणा प्रताप जयंती पर दलितों ने उस बात का हवाला देते हुए कि उन्हें बाबा साहेब के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम नहीं करने दिया गया था, तो अब वो भी किसी तरह का जुलूस नहीं निकालने देंगे.
इसी टकराव की स्थति ने दोनों समुदायों के बीच हिसंक घटनाओं को अंजाम दिया. लगभग एक महीने तक रह-रहकर चली इन हिंसक घटनाओं में दलितों की बस्ती में प्रशासन की मौजूदगी में आग लगा दी गई, इन लोगों पर खुलेआम तलवारों से हमला किया गया तथा महिलाओं के शोषण की घटनाएं भी सामने आई.
वहीं दलितों पर अत्याचार के विरोध में खड़े हुए भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर पर देशद्रोह का केस बना कर जेल में डाला गया. चन्द्रशेखर ने भीम आर्मी की स्थापना 2015 में की थी जिसका मकसद आए दिन दलित समुदाय पर होते आ रहे हिंसक हमलों का प्रतिकार करना था. इस संगठन का दावा है कि ये लोग संविधान के दायरे में रहकर दलितों पर होने वाली हिंसक घटनाओं का प्रतिकार करते आए हैं.
वही कुछ लोग भीम आर्मी के अस्तित्व पर ही उंगली उठा रहे हैं कि इस तरह के संगठन समाज को बांटने का काम करते हैं परंतु इस प्रकार के तर्क देने वालों को यह नहीं भुलना चाहिए की इसी देश में हिन्दु युवा वाहिनी, हिन्दु सेना, राजपूत करणी सेना, क्षत्रिय सेना जैसे तमाम संगठन हैं. वहीं अगर गौरक्षा के लिए
भारतीय गौरक्षक दल हो सकता है, तो अपने लोगों
की रक्षा के लिए चन्द्रशेखर भीम आर्मी संगठन बनाता है तो इसमें ग़लत क्या है?
चंद्रशेखर को कभी नक्सली कहा जाता है तो कभी प्रदेश की क़ानून व्यवस्था भंग करने के आरोपी के तौर पर रासुका( राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून) लगाया जाता है.परंतु दलित बस्ती में आग लगाने वाले तथा उन लोगों पर जुल्म डहाने वाले दबंग और रसुखदारों को अब तक जे़ल में भी नहीं डाला गया है. शेर सिंह राणा जो सांसद फुलन देवी की हत्या में सजायाफ़्ता है और अभी जमानत पर हैं, उस पर लोगों ने आरोप लगाए हैं कि इस घटना के पीछे शेर सिंह राणा का हाथ है. ऐसे मे यह चिंता का विषय है कि हाशिए के लोगों के लिए क़ानून के हाथ छोटे क्यो पड़ जाते हैं.
चन्द्रशेखर आज़ाद का भीम आर्मी बनाने के पीछे का तर्क है कि दलितों पर आए दिन हमले होते रहते हैं तथा दलित समाज को नीचा दिखाने का प्रयास हमेशा से होता रहा है. जिसका कारण है, लम्बे अरसे से अपने सम्मान और स्वाभिमान के साथ जीनें के सवैंधानिक अधिकार को आज तक भी ये लोग आत्मसात नहीं कर पाए हैं. वही आज दलित युवा पढ़-लिख कर आगे बढ़ रहें है तथा वे अपने हक़ों और अधिकारों को प्राप्त करने के लिए रास्ता अख्तियार करना जानते हैं.
चंद्रशेखर के सोशल मीडिया पर एक आह्वान पर हज़ारों युवा दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकत्र हो जाते हैं. यह पहला मौका था जब नई पीढी़ के पढ़े-लिखे दलित युवा देश भर से इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए हों. इन लोगों के लिए सोशल मीडिया वरदान की तरह काम कर रहा है क्योंकि मुख्यधारा के मीडिया में इन लोगों की आवाज़ उठाने वाला कोई दिखाई नहीं पड़ता है.
1973 की रासुका से जुड़ी एक रिपोर्ट के अनुसार 72 फीसदी लोगों पर लगाया गया रासुका ग़लत साबित हुआ जिसे बाद में हटाना पड़ा इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि सत्ताधारी लोग किस तरह से रासुका का प्रयोग उनकों चुनौती देने वालों के खिलाफ करती आईं हैं. ऐसा ही चन्द्रशेखर के मामले में भी दिखाई दे रहा है. चन्द्रशेखर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन पर दर्ज सभी मामलों में जमानत दे दी थी परंतु जिस दिन 'आजाद' को आजाद होना था उसी दिन सरकार ने रासुका लगा कर 'आजाद' को फिर से कैद कर दिया.
अभी कुछ दिन पहले सोशल मीडिया के ज़रिए चन्द्रशेखर की एक तस्वीर सामने आई जिसमें चन्द्रशेखर व्हीलचेयर पर बैठा हुआ दिखाई दिया था इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चन्द्रशेखर के साथ जेल प्रशासन किस तरह पेश आ रहा है. क्योंकि चन्द्रशेखर किसी राजनेता का बेटा नहीं है, क्योंकि वह किसी व्यवसायी का बेटा नहीं है क्योंकि वह किसी रसूख़दार के घर पैदा नहीं हुआ शायद यही वजह है कि जो चन्द्रशेखर मुच्छो में तांव देकर अपने पैरो पर जेल गया था वह अब व्हीलचेयर पर दिखाई दे रहा है.
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