NHP -2017 की चुनौतियां!
एक विकासशील देश के लिए अपनी जनता को अच्छे स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करावना एक बड़ी चुनौती होती है, वहीं भारत जैसा विशालकाय देश जो जनसंख्या के पैमाने पर विश्व में दूसरा दर्जा रखता हो उसके लिए यह काम ओर भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. आज हमारी जनसंख्या 125 करोड़ के आकड़े को पार कर चुकी है.
देश के हर नागरिक की स्वास्थ्य संबन्धी जिम्मेदारी केन्द्र और राज्य सरकारों की बनती हैं. स्वास्थ्य एक ऐसा मसला है जो हर आयु वर्ग से जुड़ा होता है मतलब की हमे देश की कुल जनसंख्या को मद्देनज़र रखते हुए स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की जरूरत होती है.
इसी बीच सरकार की ओर से NHP( National Health Policy) राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लागू करने के फैसले से कुछ उम्मीद की किरण दिखाई पड़ती है कि सरकार की नियत देश के स्वास्थ्य स्तर को बढा़ने की है. इसी संदर्भ में सरकार की ओर से संसद में लंबित राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति संबन्धि बिल पारित कर दिया गया है. नीति का मुख्य उद्देश्य सभी उम्र वर्ग के नागरिकों को उच्च स्तरिय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है.
इससे पहले इस तरह की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 1983 और अंतिम राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 में जारी कि गई थी. 2002 की स्वास्थ्य नीति तथा आज की स्वास्थ्य संबन्धी समस्यायों को देखते हुए इस नई नीति को लागू करने का प्रस्ताव संसद में पेश किया गया था जिसको मौजूदा सरकार ने पारित कर दिया है.
इस नीति के तहत सरकार नें स्वास्थ्य बजट को पहले से 1.5 फिसदी बढा़ने का दावा किया है. इसके तहत 2025 तक औसत आयु सत्तर वर्ष करने तथा शिशु मृत्यु दर घटाने का लक्ष्य रखा गया है. इस तरह के लक्ष्यों की प्राप्ती तब तक संभव नहीं है जब तक स्वास्थ्य विभाग से जुड़े ऊपर से लेकर नीचे तक के तमाम लोग इसको एक लक्ष्य के तौर पर लेकर नहीं चलेंगें.
काग़जी तौर पर सरकारों की ओर से तमाम सुविधाएं देने की बात कही जाती हैं परंतु ज़मीनी हकीकत तो कुछ ओर ही बया करती है. देश में ग्रांमीण स्तर पर प्राथमिक उपचार के लिए 'प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र' स्थापित किए गए है.
ये प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र एक निश्चित जनसंख्या वाले गाँवों व कस्बों में बनाए गए है तथा आस-पास के गांव के लोगो को भी इनसे जो़ड़ा गया है. यह जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा सरकारी तंत्र का पहला उपचार केन्द्र है जहां पर आधिकारिक तौर पर बामुश्किल एक एम.बी.बी.एस और एक बी.डी.एस डॉ की तैनाती की होती है और साथ में कुल तीन नर्स वो भी पाली के हिसाब से काम देखती हैं.
वही अगर निजी अस्पतालों की बात करें तो इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही हैं आर्थिक रूप से मजबूत परिवारों के बच्चें मैडिकल की पढ़ाई करने के बाद निजी क्लीनिक खोलनें कि लालसा रखते हैं या फिर विदेशों में जाकर काम करना पसंद करते हैं.
MCI (MEDICAL COUNCIL OF INDIA) के अनुसार 2013 से 2016 के बीच भारत में मैडिकल की पढा़ई करने के बाद लगभग 4701 बच्चों नें विदेश का रुख किया है. ऐसी स्थिति में बहुत कम बच्चें मैडिकल कि पढा़ई करने के बाद सरकारी विभाग में काम करना चाहते हैं.
इसका मुख्य कारण सरकार की ओर से चिकित्सकों को दी जाने वाली सुविधाओं की उपलब्धता का न होना है. ओर-तो-ओर सरकारें चिकित्सकों की सुरक्षा तक का अस्पतालों में प्रबंध नहीं कर पा रही है. हाल ही में अनेकों ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें डॉक्टरो को सरेआम पिटने के मामलें सामने आए हैं. महाराष्ट्र में चिकित्सकों कि सुरक्षा का मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है. ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि सरकारी अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के लिए नए दौर के चिकित्सक आगे आएगें.
MCI (MEDICAL COUNCIL OF INDIA) कि रिपोर्ट के अनुसार देश में डॉक्टरो की बड़े स्तर पर कमी है. MCI की ताजा रिपोर्ट के अनुसार आज देश में पाँच लाख से ज्यादा डॅाक्टरों की कमी है. इन आँकडों को पार करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1000 लोगों पर एक डॉ की जरूरत है, लेकिन भारत में यह आँकड़ा 1650 से ज्यादा लोगों पर एक डॉ का है. ऐसे में यह लोगों के स्वास्थ्य की गारंटी से लेकर डॉक्टरों पर बढ़ते काम का दबाव, चिंता का विषय है.
ऐसा भी नहीं है कि भारत ही मात्र ऐसा देश है जिसमें डॉक्टरों की कमी हो WHO के अंतर्गत आने वाले कुल देशों में से 44 फिसदी देश ऐसे हैं जिनमें डॉक्टरों की कमी की समस्या आम हैं. वहीं दूसरी ओर रुस में यह स्थिति सबसे अच्छी है जहाँ पर 1000 की आबादी पर तीन डॉ हैं.
भारत में कागजी नीतियां बनाने पर तो बहुत जोर दिया जाता है राजनीतिक पार्टीयां मात्र नीतियों और कानूनों के नाम पर जनता को भाषणों के जरिए फुसला कर चुनावी अखाड़ों में जीत भी जाती हैं परंतु आम जनता फिर उसी अखाड़े में चीत हुई दिखाई देती है.
अत: ऐसे में इन तमाम समस्यायों को देखते हुए सरकार की ओर से लाई गई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को ज़मीनी स्तर पर लागू करना सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी.