28 June 2021

भात प्रथा का बदलता स्वरूप!

भात प्रथा का बदलता स्वरूप!

लेखक: शीनू मोठसरा


भात प्रथा भारतीय विवाह संस्कृति में विवाह से पहले होने वाली रस्मों में से एक अहम रस्म है। कहा जाता है पहला भात कृष्ण जी ने सुदामा की बेटी की शादी में भरा था यह प्रथा उस सतयुग से आज के युग तक चली आ रही है। इस प्रथा से जुड़ी एक और कहानी जो प्रसिद्ध है वो है 'नानीबाई रो मायरो' जो कृष्ण जी के अपने भक्त नरसी की नातिन के विवाह में भक्ति पर विश्वास का प्रमाण है।

विवाह समारोह एक बड़ा उत्सव है जो सभी रिश्तेदारों और जान पहचान वाले लोगों का मिल जुलकर खुशियां मनाने का अवसर प्रदान करता है। विवाह से जुड़ी दहेज प्रथा से तो हम सभी वाकिफ हैं लेकिन भात प्रथा को लेकर हो सकता है सबके अलग-अलग विचार हों, किसी प्रथा को लेकर हमारा विचार उसे जिस रूप में हमारे आस पास निभाया जाता है इससे बनता है।

भात एक पुण्य!

बदलते दौर में समाज की सोच में बहुत बदलाव आए हैं। बेटियों को बोझ मानने वाले परिवारों की गिनती कम हो रही है। पिता अपने कृतित्व का पालन करते हुए बेटी का विवाह एक अच्छे परिवार में कर के अपनी जिम्मेदारी से राहत लेता है कि अब उसकी बेटी अपने परिवार में रहकर अपने पति के काम और बच्चों का लालन-पोषण कर खुशी गृहस्त जीवन व्यतीत करे।

बेटी का मायका हर सुख-दुख में उसके साथ खड़े रहने की कोशिश करता है। पिता के बाद भाई अपनी बहन की खुशियों और जरूरतों का ख्याल रखता है, रिश्तों में आन-जान और मेल जोल के प्रयाप्त प्रयास करता है। भाई की एक जिम्मेदारी मानी जाती है वो अपनी बहन का भात भरे, जो उसके बच्चों के विवाह की रस्म में लिया जाता है।

इस रस्म के अनुसार बहन अपने भाई को अपने बच्चों के विवाह का न्योता देने उसके द्वार जाती है। बहन का स्वागत तहेदिल से खुशियों और नाच गानों के साथ किया जाता है। विवाह के दिन भाई, बहन के आमंत्रण पर उसके घर अपने परिवार ,दोस्तों और रिस्तेदारों के साथ जाता है। चौखट पर तिलक से लेकर तोहफे देने तक खुद ही एक समारोह होता है।

भात प्रथा एक पुण्य का काम है, भाई के दिये तोहफों, मिठाई और आशीर्वाद उनके भानजा/भानजी के वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करते हैं।


रीति रिवाज अगर अपने असल रूप में निभाये जायें तो वो परिवारों को जोड़ने, प्रेम-प्यार बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं परंतु आप इस बात से वाकिफ होंगे के बदलते दौर के साथ रिवाजों के भी मायने बदले हैं। 


भात बदलता रूप:

बेटियां या बहनें कभी बोझ नहीं होती, ये तो इसी समाज की बदलती हुईं नीतियां हैं जो उन्हे इस कटघरों में खड़ा करती हैं। दहेज देना पिता की मजबूरी बन जाता है। पर भात का पुण्य से मजबूरी का सफर, मजबूरी नहीं असंतुष्टि या लालसा है और इस प्रथा में पुरुषप्रधान समाज के साथ-साथ लड़कियों, औरतों की अहम भूमिका है। 
भात, एक भाई की जिम्मेदारी है पर उसे मजबूरी बनाने में उन बहनों का हाथ है जो इसे एक रस्म न मानकर एक व्यापार की तरह लेती हैं। वो ये तो याद रखती हैं कि उनका घर है, उनके बच्चे हैं तो उनका भाई अपनी जिम्मेदारी निभाए, वास्तव में कहे तो उनको, उनके तोहफे, जेवर और धन दे जितना वो चाहती हैं मगर वो बहन ये भूल जाती हैं कि उस भाई का भी परिवार है बाकी जिम्मेदारियां हैं। 

प्रेम से लालच की ये कहानी बहन भाई के रिश्ते में एक बड़ी दरार है। अनुमान नहीं अनुभव की बात है दहेज प्रथा जहां रिश्ता जोड़ती है, भात प्रथा का ये रूप रिश्ते तोड़ देती है।


मेरा विचार:

हम बेटियां जब अपने पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती तो फिर अपने भाई पर क्यों, विवाह के बाद ससुराल हमारा अपना घर है हमारे बच्चे हमारी जिम्मेदारी हैं। लालच को रिश्तों पर हावी मत होने दें यदि अपको लगता है कि आपके पिता की सम्पत्ति पर आपका हक है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन वो हक आप किस तरह जताती हैं बस फर्क इस बात का है। 

जीवन भर आपके पति आपके पति, बच्चों और ससुराल का सम्मान करने वाले उस भाई को पैसों में ना तौले। वो अपनी हैसियत के हिसाब से 11 लाख या 11 रुपये जो भी दे आशीर्वाद के रूप में स्वीकार कर रिश्तों को उम्रभर फलने फूलने का आशीर्वाद दें।

नोट: विचार निजी हैं, किसी को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है।


09 May 2021

शाह ने राममाधव को लगाया ठिकाने


बीजेपी के नेताओं के लिये बीजेपी में शामिल होने के बजाये RSS के रास्ते बीजेपी में जाना फायदे का सौदा रहा है। अब तक जितने भी नेता, RSS से बीजेपी में आए हैं सभी ने पार्टी में ठीक-ठाक पद-प्रतिष्ठा पाई है।

इस बीच दो ही नेता ऐसे दिखाई देते हैं जिनकी संघ से बीजेपी में आने के बाद भी दाल नहीं गल पाई, पहले थे संजय जोशी जिसको गुजरात में ही मोदी-शाह की जोड़ी ने ठिकाने लगाया, संजय जोशी अब न तो RSS के रहे न ही बीजेपी के।

दूसरा नाम है राममाधव। राममाधव के पिता भी संघ के स्वयंसेवक रहे हैं पिता के चलते माधव बचपन से ही संघ से जुड़े हुए हैं। राम माधव को पूर्व सर कार्यवाह सुरेश जोशी (भैया जी जोशी) का  करीबी माना जाता हैं। सुरेश जोशी की सिफारिश पर ही 2014 में सरकार बनने के तीन महीने के अन्दर ही राममाधव को बीजेपी में शामिल किया गया।

शुरुआत से ही सर कार्यवाह सुरेश जोशी और मोदी के बीच समीकरण ठीक नहीं रहे हैं जिसके चलते सुरेश जोशी ने राम माधव को पार्टी अन्दरखाने मोदी-शाह की जोड़ी पर नजर बनाये रखने के लिए पार्टी महासचिव बनाकर भेजा। अब राममाधव पर कोई भी निर्णय लेने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के पास था। अमित शाह ने राममाधव को न तो राज्यसभा भेजा और न ही 2019 का लोकसभा चुनाव लड़वाया। कैबिनेट में जगह देना तो दूर माधव को दिल्ली से दूर रखा गया।

राम माधव को जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर की जिम्मेदारी दी गई जिसे माधव ने बखूबी निभाया भी। जम्मू कश्मीर में बीजेपी की पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनवाने में राममाधव की मुख्य भूमिका रही थी। इसके बाद शाह ने राममाधव को जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर की जिम्मेदारियों से भी मुक्त कर दिया। 

मोदी के पहले कार्यकाल की शुरुआत से ही राममाधव मोदी के विदेशी दौरों के प्रबन्धक के तौर पर दिखाई दिए, न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वायर में हुए कार्यक्रम से लेकर अन्य विदेशी दौरों पर भी साथ दिखाई दिये। अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ के चलते माधव की अन्तरराष्ट्रीय मीडिया पर भी ठीकठाक पकड़ है। लेकिन माधव के बढ़ते कदम से शाह को परेशानी थी इसके बाद से माधव को विदेशी कार्यक्रमों से भी दूर रखा गया। 

पार्टी महासचिव के पद पर रहते हुए 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान राममाधव ने पार्टी के खिलाफ एक बयान दिया। राममाधव ने अपने बयान में कहा था कि 'बीजेपी बहुमत के आँकड़े से दूर रह सकती है।' अपने इस बयान को लेकर माधव पार्टी के शीर्ष नेताओं की आंखों में चढ़ गए। माधव के बयान का जवाब देते हुए नीतिन गडकरी ने नाराजगी जाहिर की थी। 

इसके बाद 2020 में जेपी नड्डा के पार्टी अध्यक्ष बनने के कुछ महीने बाद राममाधव को बीजेपी महासचिव पद से भी हटा दिया गया। हाल ही में बेंगलूरु में हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में दत्तात्रेय होसबोले को नया सर कार्यवाह बनाया गया है।

संघ में सरसंघचालक के बाद यह नम्बर 2 की कुर्सी है। होसबोले मोदी के करीबी माने जाते हैं ऐसे में भागवत, होसबोले और मोदी तीनों एकमत के हैं। राम माधव के करीबी भैया जी जोशी के सर कार्यवाह पद से हटते ही और मोदी के करीबी होसबोले के नये सर कार्यवाह बनते ही राममाधव को बीजेपी से संघ में वापस बुला लिया गया है। इस गठजोड़ के बीच बीजेपी के अन्दर राममाधव के पैर जमना मुश्किल हो चुका था। इस तरह राममाधव को फिर से संघ में भेजकर मोदी-शाह की जोड़ी ने माधव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के सारे रास्ते बंद कर दिये।